Date - 22/10/2024
स्वर संधि
स्वर संधि हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें दो स्वरों के मिलन से एक नया स्वर उत्पन्न होता है। स्वर संधि के पाँच मुख्य प्रकार होते हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:
1. दीर्घ संधि:
नियम: जब एक समान स्वर मिलते हैं, तो वे दीर्घ स्वर का निर्माण करते हैं।
मात्रा: दीर्घ स्वर, जैसे "आ", "ई", "ऊ"।
उदाहरण:
1. राम + अयन = रामायण
2. परम + आत्मा = परमात्मा
3. राम + आश्रय = रामाश्रय
3. हरि + ईश = हरीश
5. गुरु + उदय = गुरूदय
2. गुण संधि:
नियम: जब "अ" या "आ" के बाद "इ", "ई", "उ", "ऊ" आते हैं, तो उनके मिलने से क्रमशः "ए" या "ओ" का निर्माण होता है।
मात्रा: गुण संधि में "ए", "ओ" लगते हैं।
उदाहरण:
1. देव + इन्द्र = देवेन्द्र
2. राज + इन्द्र = राजेन्द्र
3. पर + उपकार = परोपकार
4. महा + उदय = महोदय
5. गज + उद्धर = गजोधर
3. वृद्धि संधि:
नियम: जब "अ" या "आ" के बाद "ए", "ऐ", "ओ", "औ" आते हैं, तो उनके मिलने से "ऐ" या "औ" का निर्माण होता है।
मात्रा: "ऐ", "औ" का प्रयोग होता है।
उदाहरण:
1. देव + ऐश्वर्य = दैव
2. मनु + ओज = मनौज
3. हरि + ओज = हरौज
4. गिरी + ईश = गिरैश
5. नर + औदार्य = नैरौदार्य
4. यण संधि:
नियम: जब "इ", "ई", "उ", "ऊ" या "ऋ" के बाद "अ", "आ" आते हैं, तो "इ" और "ई" के स्थान पर "य", "उ" और "ऊ" के स्थान पर "व", और "ऋ" के स्थान पर "र" का प्रयोग होता है।
मात्रा: "य", "व", "र"।
उदाहरण:
1. कुमारी + अर्चना = कुमर्यर्चना
2. देवी + आराधना = देव्याराधना
3. भू + अकर्षण = भ्वकर्षण
4. सत्रु + अहिंसा = सत्र्वहिंसा
5. ऋषि + अनु = ऋष्यानु
5. अयादि संधि:
नियम: जब "ए", "ऐ", "ओ", "औ" के बाद स्वर आते हैं, तो "अय" या "व" का निर्माण होता है।
मात्रा: "अय", "व"।
उदाहरण:
1. नील + अर्णव = नीलार्णव
2. त्रैलोक्य + ईश्वर = त्रैलोक्येश्वर
3. हिमालय + ईश्वर = हिमालयेश्वर
4. सुधा + उदय = सुधायुदय
5. विष्णु + ऐश्वर्य = विष्ण्वैश्वर्य
इन पाँच स्वर संधियों के साथ प्रत्येक संधि में लगने वाली मात्राएँ और उनके उदाहरण स्पष्ट रूप से दिए गए हैं।
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